Tuesday 11 October 2011

Hindi Life Thought Poems

दर्द कैसा भी हो आंख नम न करो
रात काली सही कोई गम न करो
एक सितारा बनो जगमगाते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो
बांटनी है अगर बाँट लो हर ख़ुशी
गम न ज़ाहिर करो तुम किसी पर कभी
दिल कि गहराई में गम छुपाते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो
अश्क अनमोल है खो न देना कहीं
इनकी हर बूँद है मोतियों से हसीं
इनको हर आंख से तुम चुराते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो
फासले कम करो दिल मिलाते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो.. 
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हमने भी ज़माने के कई रंग देखे है
कभी धूप, कभी छाव, कभी बारिशों के संग देखे है

जैसे जैसे मौसम बदला लोगों के बदलते रंग देखे है

ये उन दिनों की बात है जब हम मायूस हो जाया करते थे
और अपनी मायूसियत का गीत लोगों को सुनाया करते थे

और कभी कभार तो ज़ज्बात मैं आकर आँसू भी बहाया करते थे
और लोग अक्सर हमारे आसुओं को देखकर हमारी हँसी उड़ाया करते थे

"अचानक ज़िन्दगी ने एक नया मोड़ लिया
और हमने अपनी परेशानियों को बताना ही छोड़ दिया"

अब तो दूसरों की जिंदगी मैं भी उम्मीद का बीज बो देते है
और खुद को कभी अगर रोना भी पड़े तो हस्ते हस्ते रो देते है 
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अब घर से निकलना हो गया है मुश्किल,
जाने किस मोड़ पर खडी है मौत......
दस्तक सी देती रहती है हर वक्त दरवाजे पर,
पलकों के गिरने उठने की जुम्बिश भी सिहरा देती है....
धड़कने बजती है कानो में हथगोलों की तरह,
हलकी आहटें भी थर्राती है जिगर ......
लेकिन जिन्दगी है की रुकने का नाम ही नहीं लेती,
दहशतों के बाज़ार में करते है सांसो का सौदा....
टूटती है, पर बिखरती नहीं हर ठोकर पे संभलती है,
पर कब तक ??? कहाँ तक???????
क्यूंकि अब घर से निकलना हो गया मुश्किल
जाने कौन से मोड़ पे खडी है मौत........
डर से जकड़ी है हवा,दूर तक गूंजते है सन्नाटे...
खुदा के हाथ से छीन कर मौत का कारोबार,
खुद ही खुदा बन बैठे है लोग....
मुखोटों के तिल्लिस्म में असली नकली कौन पहचाने
अपने बेगानों की पहचान में ख़त्म हो रही है जिन्दगी ...
अब लोग दूजों की ख़ुशी में ही मुस्कुरा लेते है,
घर जले जो किसी का तो,दिवाली मना लेते है....

खून से दूजों के खेल लेते है होली,
उडा कर नया कफन किसी को वो ईद मना लेते है........
क्यूंकि घेर से निकलना हो गया है मुशकिल
जाने कौन से मोड़ पर कड़ी है मौत.... 
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 ¢½ मैं दो कदम चलता और एक पल को रुकता मगर...........
¢½ इस एक पल जिन्दगी मुझसे चार कदम आगे बढ जाती ।
¢½ मैं फिर दो कदम चलता और एक पल को रुकता और....
¢½ जिन्दगी फिर मुझसे चार कदम आगे बढ जाती ।
¢½ युँ ही जिन्दगी को जीतता देख मैं मुस्कुराता और....
¢½ जिन्दगी मेरी मुस्कुराहट पर हैंरान होती ।
¢½ ये सिलसिला यहीं चलता रहता.....
¢½ फिर एक दिन मुझे हंसता देख एक सितारे ने पुछा..........
¢½ " तुम हार कर भी मुस्कुराते हो ! क्या तुम्हें दुख नहीं होता हार का ? "
¢½¢½ तब मैंनें कहा............
¢½ मुझे पता हैं एक ऐसी सरहद आयेगी जहाँ से आगे
¢½ जिन्दगी चार कदम तो क्या एक कदम भी आगे ना बढ पायेगी,
¢½ तब जिन्दगी मेरा इन्तज़ार करेगी और मैं.....
¢½ तब भी युँ ही चलता रुकता अपनी रफ्तार से अपनी धुन मैं वहाँ पहुँगा....
¢½ एक पल रुक कर, जिन्दगी को देख कर मुस्कुराउगा..........
¢½ बीते सफर को एक नज़र देख अपने कदम फिर बढाँउगा।
¢½ ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाउगा.......
¢½ मैं अपनी हार पर भी मुस्कुराता था और अपनी जीत पर भी...
¢½ मगर जिन्दगी अपनी जीत पर भी ना मुस्कुरा पाई थी और अपनी हार पर
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**सुबह से लेकर रात तक.. भागती रहती है ये जिंदगी ..
कभी इस खबर.. कभी उस खबर.. मै .. बेखबर सा होकर घूमता रहता हूँ..
बदबूदार लाशें... नालियों में सड़ती नवजात बेटियाँ... तो बेटो के जन्मोत्सव..
चौराहे पर एक कट चाय पीकर... मई फिर भी कविता लिख लेता हूँ...
** निर्मोही सा ... अब ये मन .. नहीं पसीजता किसी घटना से.....
मोहल्ले के कुत्ते की मौत पर.... मै कभी बहुत रोया था....
अब नर संहारो से भी कोई सरोकार नहीं ....
फिर भी देर रात घर लौटते वक़्त..मै मुंडेर पर ..चिडियों का पानी भर लेता हूँ...
***परिभाषा काल की मुझे नहीं मालुम.. जाने कब क्या हो...
कोई मिला तो हंस लिए...न मिला तो चल दिए...
पदचाप अपने ...निशब्द भी मिले... तो युही कुछ गुनगुना लिया...
मै कैमरा अपना पैक करके ..छोटे से कमरे का .. झाडू-पोंचा कर लेता हूँ...
षडयंत्र..राजनीती.. विरोध ..प्रदर्शन... जीवन के अब सामान्य पहलु से हो चले ...
गोपाल..बंटी...गोलू...आबिद की...याद बहुत आती है..खेतो की मिट्टी में गुजरा था बचपन..
अब धमाको में उड़े.. बच्चो का खून...
अपनी खबर देखते-देखते... मै अपने जूतों से चुपचाप साफ कर लेता
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आज एक बार सबसे मुस्करा के बात करो
बिताये हुये पलों को साथ साथ याद करो
क्या पता कल चेहरे को मुस्कुराना
और दिमाग को पुराने पल याद हो ना हो

आज एक बार फ़िर पुरानी बातो मे खो जाओ
आज एक बार फ़िर पुरानी यादो मे डूब जाओ
क्या पता कल ये बाते
और ये यादें हो ना हो

आज एक बार मन्दिर हो आओ
पुजा कर के प्रसाद भी चढाओ
क्या पता कल के कलयुग मे
भगवान पर लोगों की श्रद्धा हो ना हो

बारीश मे आज खुब भीगो
झुम झुम के बचपन की तरह नाचो
क्या पता बीते हुये बचपन की तरह
कल ये बारीश भी हो ना हो

आज हर काम खूब दिल लगा कर करो
उसे तय समय से पहले पुरा करो
क्या पता आज की तरह
कल बाजुओं मे ताकत हो ना हो

आज एक बार चैन की नीन्द सो जाओ
आज कोई अच्छा सा सपना भी देखो
क्या पता कल जिन्दगी मे चैन
और आखों मे कोई सपना हो ना हो

क्या पता
कल हो ना हो

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